Niyati - 1 in Hindi Fiction Stories by PRATIK PATHAK books and stories PDF | नियति ...can’t change by anybody - 1

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नियति ...can’t change by anybody - 1


शीर्षक: नियति ...can’t change by anybody
लेखक: प्रतीक पाठक
कहानी के किरदार :1) डॉ.अमित नायक – प्रोफेसर
2) मालिनी - डॉ.अमित नायक की सहायक
3) रंगनाथ उर्फ रंगा - डॉ.अमित नायककी कॉलेज के डिन
4) माइकल - एक गुंडा




शनिवार की रात थी करीब करीब ११:५० बजे थे, अहेमदाबाद के ऐस.जी हाइवे पे स्थित अपर्णा एपार्टमेन्ट के फ्लेट नं.३०६ में.....
में आर. जे. प्रतिक रातके ११:५० बज रहे है, अहेमदाबादमे मस्त बारिश हो रही है और आप सुन रहे है, “रात बाकि बात बाकि”, ऐसी मस्त बारिश में आपके साथ आपका कोई हमसफर हो, और उसे छोड़ने का मन न हो, तो उन लोगो के लिये खास एक पैशकश, “अभी नाजाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं”. स्टेय ट्यूनविथ अवर एफ॰एम विथ योर आर.जे प्रतिक......
फ्लेट में बड़े ज़ोर से एफ.एम. बज रहा था, बारिश की बजह से शहेरकी सारी गतिविविधिया ठप हो गई थी आसमानमे काले बादल अभी भी अपना कहर बरसा रहे थे। और शहर पे अपनी पहरेदारी करके खड़े थे। फ्लेट के निचे कुत्तोकी भोंकने की आवाज उ उउ उ उ उ....... और साथ में कौओ की भी अवाजे कुछ अलग ही निशानि दे रही थी।
३०६ नंबर के फ्लेटका वो ड्रोईगरुम कींमती और एन्टिक वस्तुओं से शोभित था। एक कोने में छोटी सी लाइब्रेरी और रीडिंग टेबल, टेबल के बिच में पड़ी हुई थियेरी ओफ् प्रोबेबलिटी और “टाइम ट्रावेल इन आइन्स्टाइनस यूनिवर्स” की किताब, पास में आधी जली हुई सिगरेट। ड्रॉइंगरूमके बराबर बिचमे एक बड़ा सोफा और सोफे के पीछे बाबा आदमके जमानेकी बड़ी लोलक घडी, जो हर एक घंटे में टन टन ननन न...... होती थी. सोफे के पास तकरीबन ४५ सालकी उमरका एक आदमी, उसकी बायीं आंख के निचे चाकुके कुछ ताजे ज़ख्म, माथे पर सफेदपट्टी और आंखें बंध करके विहल चेर पे बैठा हुआ था , लगता था की कोई खुनी खेल जीता होगा. जीत के जशन के लिये जोहनी वोकर और कांच के तीन ग्लास और बरफ और कुछ चखना. ३ ग्लास और से ऐसा लगता था के कोई और भी उसके जित की खुशी में शामेल होने वाला है।
समय ११:५८ फ्लेट का दरवाजा धडामसे खुला .... कुत्तों की अवाजे अचानक बढ़ गई, और जोरदार बिजली और बादलोकी अवाजे, ऐ चारो प्रक्रिया संयोग या नियति ..... दरवाजे के पास २६-२८ सालकी एक सुंदर लड़की, ब्लैक लोवेस्ट साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउस गोरा और कसा हुआ बदन, खुले बाल की एक लट उसके आंखोको छूती थी। बारिश की वजह से साड़ी थोड़ी बदनसे चिपकी हुई थी और चहेरे पे पडे थोडे बारिश की बुंदे उसकी सुंदरता को ज्यादा मोहक बनाता था। और ऐसी मोहक सुंदरता के आगे सामने विहल चेर पे बैठा हुआ वो आदमी भी भगवानके पास पेर की चाहना रखता होगा।
यस वेलकम माय डियर...... क्यू इतनी देर हो गई और बाकी के दो लोग कहा है ? ? आदमी इस से कुछ ज्यादा बोले उसके पहले ही वो लड़किने अपने पर्श मे से गन निकाली और सामने बैठे आदमीके सीने में दो गोलियाँ मारदी और एक गोली लोलक घडी पे मारी, और उसके पास में जाके बोली, ११;५९ अभी दिन पूरा नहीं हुआ, में जीत गई, अभी तुम जाओ छोड़ के दिल बहोत भर गया। हाह हा हा....